श्री राजारामजी महाराज की जीवनी | राजेश्वर भगवान का जीवन परिचय - Latest Mahiti

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श्री राजारामजी महाराज की जीवनी | राजेश्वर भगवान का जीवन परिचय


ऑंजणा कलबियों के सन्त शिरोमणि श्री राजारामजी महाराज की जीवनी

श्री राजारामजी महाराज की जीवनी | राजेश्वर भगवान का जीवन परिचय


संत श्री राजेश्वर भगवान की जीवनी -


राजाराम जी महाराज का जन्म :-

श्री 1008 श्री राजारामजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1939 को मिति चैत्र शुक्ल नवमी को मोती बाई की कोख से हुआ था

राजाराम जी के माता पिता:-

पिताजी :- श्री हरींगाराम जी
माताजी :- श्रीमती मोती बाईं

संत श्री राजेश्वर  का जन्म स्थान:- 

जोधपुर जिला की लूनी तहसील के ग्राम शिकारपुरा में हुआ था

राजाराम जी महाराज का जीवन परिचय-

प्राय: यह माना जाता है कि क्षत्रियवंशी ऑंजणा समुदाय की सिंह गोत्र में अवतार लेने वाले संत श्री राजारामजी महाराज ने मिति चैत्र शुक्ल नवमी संवत् 1939 को श्री हरींगाराम जी की धर्मपत्नी श्रीमती मोती बाईं की कोख से जोधपुर जिला की लूनी तहसील के गांव शिकारपुरा में लौकिक जन्म लेकर किस प्रकार रामदेव जी, तेजाजी, जाम्बाजी, पीपाजी, इत्यादि की तरह देव तुल्य कर्म कर लोकदेवता कहलाने का गौरव प्राप्त किया।

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राजाराम जी का असली फोटोRajeshwar bhagwan photo Hd


ऑंजणा कलबियों का प्रमुख तीर्थ धाम शिकारपुरा

Rajeshwar bhagwan photo Hd

शिकारपुरा गांव में श्री राजारामजी महाराज के कई धाम "राजारामजी आश्रम तिर्थ धाम" माना जाता है यह शिकारपुरा गांव में तालाब के आगोर में राजारामजी निज मंदिर के उत्तर में लगभग पांच सौ मीटर दूर स्थित है।

 इस की स्थापना स्वंम श्री राजारामजी महाराज द्वारा करवाए जाने के कारण इसका नाम "राजाराम आश्रम तिर्थ धाम" पङा है।

इसी आश्रम पर तपस्या ताप कर उन्होंने अलौकिक शक्तियें अर्जित कर लोकदेवता कहलाने का गौरव प्राप्त किया था।

जब उन्होंने अपने लौकिक जन्म लेने का उद्देश्य लोगों को सामाजिक और आध्यात्मिक सेवाएं कर पुरा कर दिया तब उन्होंने इसी आश्रम के दोनों भवनों के बीच खुले स्थान में विराजमान होकर चिर समाधि ले ली तब उनके अनुयायियों ने उनकेे चिर समाधिस्थ देहा का समाधि संस्कार भी उसी स्थान पर कर दिया जिस स्थान पर उन्होंने चिर समाधि ली थी । 
         
  जिस स्थान पर उनको समाधि दी थी उस स्थान पर वर्तमान में उनके लौकिक शरीर के साक्षात आकार की सफेद संगमरमर की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। प्रतिष्ठित प्रतिमा तपस्या में तलीन पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं जो प्रति वर्ष हजारों तिर्थ यात्रियों को तीर्थ करने के लिए आकर्षित करती रहती है जिसमें सबसे अधिक संख्या ऑंजणा कलबियों की होती है ।
ऑंजणा कलबियों की संख्या अधिक होने के कारण ही इसको ऑंजणा कुलबियों का प्रमुख तीर्थ धाम कहा जाता है ।

  शिकारपुरा गांव में श्री राजारामजी महाराज के कई धाम "राजारामजी आश्रम तिर्थ धाम" माना जाता है यह शिकारपुरा गांव में तालाब के आगोर में राजारामजी निज मंदिर के उत्तर में लगभग पांच सौ मीटर दूर स्थित है।

ऑंजणा जाति में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति अपने जीवन में कम से कम एक बार अपने प्रमुख धाम तीर्थ धाम शिकारपुरा की यात्रा कर अपनी इच्छा जरूर पूरी करना चाहता है । जब वह अपने तीर्थ धाम जाता है तब वह समाधि
पर प्रतिष्ठित अपने कुलदेवता श्री राजाराम जी की प्रतिमा के दर्शन कर उनके समक्ष दीया-बत्ति जला कर, नारियल,पताशा,मखाणा,मिश्री, चुरमा, फल-फूल इत्यादि

 सात्त्विक खाद्य पदार्थों का प्रसाद चढाता है तथा प्रतिमा के समक्ष स्थापित कोष से मुद्रा दान भी करता है जिस का उपयोग इस तीर्थ धाम की व्यवस्था में किया जाता है। जब ऑंजणा जाति का नव विवाहित जोङा शिकारपुरा तीर्थ धाम करने जाता है तब वह पल्ला बन्ध जात देकर अपने मंगलमय सुखमय एवं समृद्ध शाली भावी जीवन की कामना कर सभी प्रकार के द्वंदो व उलझनों से मुक्त होकर वापस लौटता है ।


 राजाराम जी के चमत्कार


चमत्कारों की चमक से, बने राजू पीर ।
हुए समर्थ महात्मा, धार मन धीर ।।

चमत्कार राजू सन्त के, रहि अजब माय ।
करगये कलू काल में, तपनी ताप कमाया ।।

चमत्कार राजू सन्त ने, किये कई हीर ।
उदाहरण अपने है सामने, जानों धार धीर ।।

आधा भोजन दान दिया, आधा जीमा आप ।
नामी दातानाम किया, रहके भुखे आप ।।

आपने जीमें सोगरे, दोय कम पचास ।
छाछ छोङी न सबङी,रसोई रावल खास ।।

छोङा राजू ने पारलू, धार घूंघरी रुप ।
धार पाया ने दूचरा, घूंघरी का रूप ।।

रूपा आया था देखने, द्वारका की छाप ।
छिल बाह दिखाई सन्त ने, रुपला को छाप ।।

तालाब सुखा शिकारपुरा, फाल्गुन महिना माय ।
राजू सन्त भर दिया, मेघ मार बुलाया ।।

फेंका मरा एक बकरीया, दृष्टों कुटिया माय ।
देख राजू कर जीवता, रेवङ माय ।।

शंख पङा था सामने, शंकर देवल माय ।
करदिया स्वंय गुजता, राज चमक बताय ।।

तालाब सांजी गांव का,भरा बन्दे नीर ।
देख राजू स्वच्छ किया, छिङक शुद्ध नीर ।।

शिला तराई सन्त ने, गहरे टांका माय ।
तिरा पाया न दूचरा, कि कोशिश हजार ।।

राजारामजी महाराज के परसा



चमत्कार अनन्त सन्त के, केहू लिख जाय ।
लगी रुकने अब लेखनी, आगे याद न आए ।।

नोट:-
      यदि आप राजेश्वर भगवान के बारे में अपनी राय COMMENT BOX जरूर दें और अपना समाज व गोत्र भी लिखें धन्यवाद।

bizhindi909

7 Responses to "श्री राजारामजी महाराज की जीवनी | राजेश्वर भगवान का जीवन परिचय"

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