ऑंजणा समाज के संत शिरोमणि श्री राजारामजी का इतिहास | History of Lokdevta Rajaramji Maharaj 2022 - Latest Mahiti

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ऑंजणा समाज के संत शिरोमणि श्री राजारामजी का इतिहास | History of Lokdevta Rajaramji Maharaj 2022


ऑंजणा कलबियों के सन्त शिरोमणि श्री राजारामजी का इतिहास।

कलबी समाज के आराध्य देव श्री राजारामजी  का इतिहास बहुत पुराना नहीं है इस पोस्ट में राजारामजी कौन थे? उनका मानव कल्याण एवं समाज सुधार में दिया अभुतपूर्व योगदान और लोकदेवता कहलाने के पीछे का इतिहास जानने के लिए बनें रहिए, पोस्ट राजारामजी का इतिहास के अंत तक।

ऑंजणा कलबियों के सन्त शिरोमणि श्री राजारामजी का इतिहास।


राजारामजी कौन थे?

संत श्री राजारामजी महाराज एक अवतार थे। उन्होंने राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले की लूणी तहसील के गांव शिकारपुरा में मिति चैत्र शुक्ल नवमीं बुधवार संवत् 1939 को लौकिक जन्म लेकर लोक देवता कहलाने का गौरव प्राप्त किया।

संत श्री राजारामजी महाराज के माता-पिता।

संत श्री श्री राजारामजी महाराज का अलौकिक जन्म कोमा धर्म के प्रति कहानी ग्रस्त मानव मानवीय समाज को पुनः धर्म के प्रति पर्वत करने के लिए निधि शुक्ला बुधवार संवत 1939 को जोधपुर जिला की लोन तहसील के गांव शिकारपुरा में हुआ था जो लोनी रेलवे जंक्शन से किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है आपके पिता श्री हरि का राम जी आईना कल भी परिवार की परम परम आर खास किया नक्की सी गोत के वंशज थे आप की माता का नाम श्रीमती मोती बाई था आप के 2 बड़े भाई और एक छोटी बहन थी आप के सबसे बड़े भाई का नाम श्री रघु तक रघुनाथा रामजी था दूसरे बड़े भाई का नाम श्री जीवनराम जी था जीवन राम जी का स्वर्गवास आपके अंतरण से पूर्व ही हो गया था


संत श्री राजाराम जी महाराज की आयु जिस समय केवल 4 वर्ष थी महारथी तथा आपके भाई श्री रघुनाथ राम जी की आयु 7 वर्षों के आसपास थी उसमें आपके पिताश्री का स्वर्गवास हो गया था आपके पिताजी का स्वर्गवास होने के पश्चात शो के दौरान माता ने एक बालिका को जन्म दिया जिसका नाम सुश्री संपर्का सुश्री संपा का स्वर्गवास केवल 9 दिनों में 2 दिनों की आयु में ही हो गया था आपके पिताजी और वह इन दोनों का स्वर्गवास होने के पश्चात आपकी माता जी भी स्वर्गवास हो गया आपके पिता तथा माता दोनों का स्वर्गवास होने पर आप तथा आपके बड़े भाई श्री रघुनाथ रामजी अनाथ हो गए अनाथ हो गए समय के जिस खेर ने आप तथा आपके भाई को जिस अवस्था में पहुंचाया उसका वृतांत कुछ पदों में इस प्रकार हैं

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ग्वाल का व्यक्तित्व


संवत् 1554 के जेठ महीना में जब श्री राजारामजी का रबारी बल्लू राम आईना निवासी शिकारपुरा के वहां साड़ियां चलाने का काम समाप्त हो गया तब आषाढ़ महीना के शिकारपुरा गांव के गोपाल को के आग्रह पर आप ने अगले 2 बरस के लिए शिकारपुरा गांव की गाय चराना स्वीकार कर लिया उस समय आप किशोर अवस्था में प्रवेश कर चुके थे तथा आपने अपने परिवार की परंपरा के अनुसार पहनावा करना प्रारंभ कर दिया था आप अपने परिवार की परंपरागत पहनावे में बहुत अच्छे लगते थे आपका आकर्षण युक्त पहनावा जबकि आंखों को आने का लगता था



श्री राजारामजी का लकी एवं जूतों को त्यागना के पीछे का इतिहास

संत श्री राजाराम जी ने शिकारपुरा गांव की गाय चराने के दौरान पहले वरिष्ठ जूते पहने हुए एवं हाथ में लाठी रखते हुए गाय सराय पर जब मैं ज्ञानियों की माला फेरने के कारण जब आपको हिंसा एवं अहिंसा का भेद मालूम हो गया तब दूसरे वर्ष अपने जूतों एवं लाठी दोनों को हिंसा के प्रतीक मानकर उनका परिचय परित्याग कर दिया जूतों का परित्याग करने से जूतों के नीचे दबकर मरने वाले जीवो की रक्षा होने लगी जूतों का त्याग करने के साथ-साथ आप ने लाठी को भी भय और अहंकार का प्रतीक मानकर त्याग कर दिया
लाठी धारण करने के दौरान हालांकि आपने लाठी का प्रयोग किसी पशु को चोट पहुंचाने के लिए नहीं किया था पर पशुओं के मन में सदा लाठी के प्रयोग की संभावना कारण बेचैनी बनी रहती थी इसलिए आपने पशुओं को चयन का जीवन जीने का अवसर प्रदान करने के लिए लाठी का भी परिचय करें

श्री राजाराम जी मैं पशु पक्षियों के प्रति लगाव रहना


संत श्री राजाराम जी का जीवन प्रारंभ से ही पशु पक्षियों से जुड़ा रहा आपका जिस समय अलौकिक जन्म हुआ उस समय आपके पिता के घर गाय और बैल विद्यमान थे आपका बाल्यकाल सीढ़ियों मोरो एवं कबूतरों इत्यादि की उपस्थिति में बीता रहा आपके माता पिता के स्वर्गवास होने के पश्चात जब आपको अपने चाचा के संरक्षण में रहे उस समय भी आप पशु पक्षियों के संपर्क में रहे आप अपने चाचा के घर में जब अपने ननिहाल पधारे तब वहां पर भी पशु पक्षियों की कोई कमी नहीं थी ननिहाल से लौटने पर जब आप ने गायों को चराने का काम किया उस समय पशु पक्षी आपने जीवन का अंग बन गई गाय चराते समय पक्षी प्रेम से प्रेरित होकर आपने जंगल में पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था की थी ठाकुर साहब पर कुआं पर अल्पना करते समय तो आपने पशु पक्षियों की बुक को अपने भूख के समान समझकर आपने अपने भोजन का आधा हिस्सा उसे दान में देने की प्रारंभ कर दिया थ अगर आपके मन में पशु पक्षियों के प्रति लगाव नहीं होता तो आप स्वयं खाली पेट लगाकर अपने भोजन का आधा हिस्सा कभी भी मोरो चिड़िया और कुत्तों को दान नहीं देती

तपस्या कर संत की पदवी प्राप्त करना


राजारामजी आध्यात्मिक श्रमजीवी अवस्था प्राप्त कर की थी आपको संत की पदवी आपके श्रमजीवी रहने पंत हो अथवा संप्रदायों के प्रति निरपेक्ष भावना रखने किसी जाति विशेष के प्रति लगाव में रखने सब के प्रति समानता का व्यवहार करने तथा अपने स्वयं के लिए जीवित में रहकर दूसरों की भलाई के लिए जीवित रहने के उपलक्ष में प्राप्त हुई थी

श्री राजाराम जी द्वारा समाधि देने की घोषणा करना


संत श्री राजारामजी महाराज कलयुग के अवतार थे उन्होंने शिकारपुरा गांव में एक साधारण किसान के घर में जन्म धारण कर मानव समाज को नहीं धार्मिक चेतना प्रदान की आपको मानव समाज को मानव धर्म की ओर प्रवृत्त कर सुखी जीवन जीने का मार्ग बताया आपने भविष्य के गर्भ में सीधी बातों को बताकर मानव समाज को सबसे किया आप का अवतरण जिस उद्देश्य को लेकर हुआ था उस उद्देश्य को आप ने प्राप्त किया आपको अपने स्वयं के लौकिक जीवन का पूरा पता था आपने अपने रहस्य पहले किसी को न बताएं जब आप नेहा और कर्ण का उद्देश्य प्राप्त कर लिया तब आपने दैनिक प्रात कालीन शारीरिक एवं


संत श्री राजाराम जी महाराज की महिमा


संत श्री राजाराम जी महाराज की महिमा अपरंपार है आप सर्वशक्तिमान है आपका अलौकिक शरीर आज हमारी आंखों के दर्शनों के लिए उपलब्ध नहीं है पर अगर हम हार्दिक श्रद्धा के साथ आप का इस्तेमाल करें तो आप आज भी हमें साक्षात दर्शन देने में समर्थ आपको सर्वव्यापी हैं जहां कहीं भी आपका भक्त आपके सच्चे मन से याद करता है वहां पर पहुंच कर आप अपने भक्तों को दर्शन देते हैं जो भी आपको निर्मल मन से भेजा है आपने वाले श्री राजारामजी महाराज को एक अवतार करूं जो महिमा अवतारों में पाई जाती आशा को लेकर अन्य औजारों की पूजा की जाती है उसी प्रकार के आलेख श्री राजारामजी महाराज की पूजा की जाती है आपने अपने जीवन में जो कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं

आपने दो कि जीवन के दौरान जीवन में उपरांत कोई कार्य कि आपकी महिमामंडित करने वाले से दुआ होते हैं


संत श्री राजाराम जी महाराज के चमत्कार


संत श्री राजारामजी महाराज कहीं प्रकार के सत्कार करने के मूर्ति रहे चमत्कारी कर्मों का निष्पादन करने के कारण ही आपको कलयुग के अवतार का हल आने का गौरव प्राप्त कर सकें आपको लौकिक जीवन का हर पहलू चमत्कारों युक्त रहा आप द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य आध्यात्मिक ज्ञान विभिन्न लोगों को शिकार हुए महसूस हुआ आपने अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही शब्द कार्य काम करने प्रारंभ करें पर लोग आप द्वारा किए गए कार्यों को केवल संयोग हुआ मानकर उसकी गंभीरता से नहीं ले सके आपने किशोरावस्था में गाय चराते समय इसी प्रकार भव्य राम शिकारी को अपनी बीवी का पानी पिलाकर बनाया वह कोई काम नहीं था गाय चराने के अलावा गांव की और उसके प्रकार किया आपने रावला लिखना करते समय देव भारती जी महाराज को किसी प्रकार का पेड़


श्री राजारामजी का लोक देवता सिद्ध होना

श्री राजारामजी का लोक देवता सिद्ध होना : उपनिषदों के अनुसार लोक दो प्रकार के माने जाते है। इह लोक और पर लोक। इह लोक का अभिप्राय इस सकल संसार से है। जिसमें मनुष्य जन्म से मृत्यु पर्यन्त रहता हुआ अपना जीवन पूरा करता है। पर लोक का अभिप्राय उस दूसरे लोक अथवा स्थान से है जो शरीर छोड़ने के पश्चात मनुष्य की आत्मा को प्राप्त होता है। पर लोक दो भागों में बंटा हुआ माना जाता है। स्वर्ग और नरक जब मनुष्य जन्म लेकर जीवन पर्यन्त सभी प्रकार के सत्य कर्म करता हुआ मरता है तब उसकी आत्मा को स्वर्ग का सुख भोगने के लिए स्वर्ग में स्थान मिलता हैऔर जो मनुष्य जन्म लेकर जीवन पर्यन्त सदा नाना प्रकार के कुकर्म अथवा असत्य कर्म करने में लगा रहता है उसकी मृत्यु होने पर उसकी आत्मा को परलोक में नाना प्रकार के कष्टों का भोग करने के लिए नरक नामक स्थान पर पड़े रहना पड़ता है। जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसकी आत्मा को परलोक में वैसा ही स्थान मिलता है। स्वर्ग में स्थान पाने वाली धर्मात्मा को संसारी लोग अपना आराध्य देव मानकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं और नरक में स्थान पाने वाली


आत्माओं को संसारी लोग भूत-प्रेत मानकर उनको किसी वृक्ष या दीवार मैं मेख मारकर खीलने या गाड़ने के प्रयास करते हैं। जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसकी मृत्यु होने पर उसकी आत्मा के साथ वैसा ही व्यवहार होता है। हमारा देश आध्यात्मिक विभूतियों का जन्म स्थान कहलाता है। हमारे देश में अनेक देवी देवताओं का आविर्भाव हुआ। चौबीस अवतारों के अलावा कई लोक देवी देवताओं का लौकिक जन्म भी हमारे देश में हुआ जिन जिन लोक देवी देवताओं का जन्म हमारे देश में हुआ। उन सबकी जाणकारी देना तो यहां संभव नहीं है पर कुछ देवी देवताओं के नाम उदाहरण के लिए यहाँ उदृत किये जा सकते हैं जिनको अवतार कहलाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका पर वे लोक देवी देवताओं की श्रेणी अपना स्थान बनाने में अवश्य ही सफल हुए उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार है :- मीराजी, श्रीयादेजी, शबरीजी, कबीरजी, दादूजी, रामदेवजी, पीपाजी, तेजाजी, जम्बाजी, खेतारामजी इत्यादि। उक्त प्रकार से जब लोक देवी देवता कहलाने का प्रसंग उठता है तब राजू देव के नाम का भी उल्लेख करना प्रासंगिक हो जाता है। जिन्होंने उपर्युक्त देवताओं की यह लौकिक जन्म लेकर देवताओं की तरह कर्म कर लौक देवता कहलाने का गर्व प्राप्त किया। सन्त श्री राजारामजी महाराज भी अन्य लोक देवी देवताओं की तरह अपने लौकिक जीवन में अन्य प्राणियों के प्रति मित्रता का व्यवहार किया। उन्होंने अन्य प्राणियों के कष्टों को अपने कष्टों के समान समझ कर उनको दूर करने के प्रयास किये। शिकारपुरा गांव की गायें चराते समय जब आपको जंगल में मण्डराने वाले पक्षियों की प्यास का पता

चलता तब आपने उनकी प्यास बुझाने के लिए वृक्षों की शाखाओं पर पानी भरे ठीकरे (परिण्डे) लटका कर उनकी प्यास बुझाने का सत्य कर्म किया। ठाकुर नाहर सिंह जी के कुंआ पर हलीपना करते समय जब आपको वहाँ पर मण्डाराने वाले प्राणियों की भूख का एहसास हुआ तब आपने अपने हलीपना की एवजी में मिलने वाले भोजन का आधा भाग कुत्तों, मोरों, चिड़ियों और चिटियों की भूख बुझाने के लिए उनको दान में देना प्रारम्भ कर दिया। आपने मूक, पशु पक्षियों के अलावा समाज में व्याप्त बुरी रस्मों, परम्पराओं, रीति रिवाजों, प्रथाओं को मिटाने का सराहनीय कार्य किये। आपने छुआ अछूत जैसी सामाजिक बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए अछूत कहलाने वाले भगाराम, फरसाराम, रूपाराम, भागराम इत्यादि को न केवल अपने पास बिठाया वरन उनके साथ समानता का व्यवहार करते हुए उनके हाथ का प्रसाद भी ग्रहण किया। आपने हर समुदाय के लोगों को नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रखने के उपदेश दिये तथा अन्ध विश्वासों के बंधनों से मुक्त कराने के प्रयास करते रहते थे। आप स्वयं अशिक्षित थे पर वे अपने अनुयायियों को पढने का आह्वान करते रहते थे। उक्त प्रकार के लौको प्रकार के कर्मों को करने के कारण आप लोगों के लिए आदर के पात्र बने। जब आप अपने सत्य कर्मों के कारण • लोगों के लिए आदर के पात्र बन गये तब लोगों ने आप को राजिया या राजू या राजूराम नाम से बतलाने की बजाय सन्त श्री राजारामजी महाराज के नाम से पुकारना प्रारम्भ कर दिया। सन्त श्री राजारामजी महाराज के नाम से से पुकारे जाने के पश्चात जब आपने भगवान की तपस्या कर लोगों के नाना प्रकार के असाध्य रोगों के उपचार आप अपनी तूम्बी के जल के छींटे लगाकर या अपनी धूनी के भषम से या अपनी चादर के पल्ले का झपटा मारकर करने लगे तब तो लोग आपको साक्षात् देवता ही मानने लग (147)

गये। रोग ग्रस्त लोग आपकी कृपा से चंगे होकर आपकी पूजा करने लग गये। कई अनुग्रहित भक्तों ने तो आपको नारियल, मिश्री, बताशा, मखाणों का प्रसाद भी चढाना शुरू कर दिया। उपर्युक्त प्रकार की अवस्था अर्जित करने के दौरान जब आपने अपनी लौकिक देह का त्याग कर अपनी आत्मा को स्वर्ग का अधिकारी बना लिया तब आपकी कृपा से अनुग्रहित लोग आपको देव तुल्य मानकर आपकी पूजा अर्चना करने लग गये। जब अनुग्रहित लोगों ने आपको अपना आराध्य देव मानकर पूजना प्रारम्भ कर दिया तब आप स्वतः ही अन्य देवताओं की तरह लोक देवता कहलाने के अधिकारी बन गये।


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"राजाराम आश्रम " तीर्थ धाम बनना  : 


जिस किसी भी स्थान पर लोग धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर किसी आराध्य देवी देवता की पूजा-अर्चना करने या पवित्र स्नान करने के लिए जाते हैं उस स्थान को तीर्थ-धाम के नाम से पुकारा जाता है। हमारे देश में जितने भी अवतार देवी-देवता हुए हैं उनके लौकिक जन्म व कर्म स्थलों को आज तीर्थ धाम के नाम से जाना जाता है। उन तीर्थधामों पर लोग धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर उनकी पूजा अर्चना करने के लिए जाते हैं। अवतारों और देवी-देवताओं के तीर्थ स्थलों के अलावा हमारे देश में जितनी भी नदियें, झीलें, झरनें इत्यादि हैं वे भी तीर्थ धामों में शुमार है जहाँ पर लोग धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर पवित्र स्नान करने के लिए जाते हैं। उपर्युक्त स्थलों के अलावा हमारे देश में जितने भी मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे गिरजे, समाधियें या अन्य देवालय बने हुए हैं वे भी तीर्थधामों में गिने जाते हैं।
जिस प्रकार अन्य लोग देवताओं के अवतरण स्थलों के अलावा कई तीर्थ धाम होते है उसी प्रकार राजूराम लोक देवता के भी अपने अवतरण स्थान गांव शिकारपुरा की पुरानी बस्ती को छोंड़कर कई तीर्थ धाम हैं। आपके कई तीर्थ धामों में से सबसे बड़ा "राजाराम आश्रम" है यह शिकारुपरा गांव के तालाब के आगोर के पास बना हुआ है। इस आश्रमधाम को नींव स्वयं सन्त श्री राजारामजी महाराज द्वारा रखे जाने के कारण इसका नाम राजाराम आश्रम धाम पड़ा है। इसी आश्रम पर तपस्या करके राजेश्वर स्वामी ने अलौकिक शक्तियें अर्जित की थी। आपने अपना खोलिया (कलेवर) बदलने के लिए इसी आश्रम पर चिर समाधि ली थी। आप द्वारा चिर समाधी ले लिए जाने पर आपके अनुयाइयों ने उसके चिरसमाधिस्थ कलेवर को इसी आश्रम में पंचभूत में विलीन किया था। आश्रम में जिस स्थन पर आपको समाधि दी गई थी उस स्थान पर निर्मित समाधि में वर्तमान में आपकी भव्य संगमरमर की मूरती प्रतिष्ठित है। प्रतिष्ठित श्वेत संगमरर की मूरती (प्रतिमा) आपके लौकिक कलेवर का साक्षात आकार दर्शाती हुई प्रतीत होती है। यह प्रतिमा तपस्या में तल्लीन पदमासन मुद्रा में विराजमान है और हर दर्शनार्थी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हुई दर्शन देती हुई दिखाई देती है। आपकी यह आकृर्षित प्रतिमा प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्रीयों को यहाँ के तीर्थ करने के लिए प्रेरित करती है। जिस प्रकार रामदेवजी, जाम्बाजी, तेजाजी इत्यादि देवी-देवताओं की समाधियें तीर्थ धाम बने हुई है उसी प्रकार सन्त श्री • राजारामजी महाराज की समधि तीर्थ धाम बनी हुई है। जहाँ पर हर साल लाखों श्रद्धालु तीर्थधाम करने के लिए पहुंचते है। राजाराम आश्रम तीर्थ धाम पर पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों का सदा तांता सा लगा रहता है। हर पूर्णिमा और अमावस्या को राजाराम आश्रम तीर्थ धाम पर मेले जैसा
माहौल बन जाता है। राजाराम जयन्ती दिवस (चैत्र शुक्ला नवमी) विवेचन दिवस (वैशाख सुदी पूर्णिमा) राजाराम कल्याण दिवस (श्रावण वदी चतुर्थदशी) और देव झूलनी दिवस (भादवी ग्यारस) को इस तीर्थ पर बहुत बड़े मेले लगते हैं जिनमें भाग लेने के लिए देश प्रदेश के हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। राजाराम आश्रम तीर्थ धाम पर पहुंचने वाले तीर्थ यात्री कई पैदल, कई रेल, बसों, जीपों, कारों, मोटरों, ट्रकों, साईकिलों या अन्य सुविधाजनक साधनों से पहुंचते है तथा कुछ परम भक्त तो दण्डवत करते हुए भी राजाराम आश्रम तीर्थ पर पहुंचकर अपने आपको धन्य हुआ मानते हैं। इस तीर्थ धाम पर पहुंचने वाले तीर्थ यात्री प्राय: सभी वर्णो, वर्गो, जातियों, सम्प्रदाओं, समुदाओं के होते हैं। इस तीर्थ पर पहुंच कर तीर्थ यात्री राजूराम लोक देवता के दर्शन कर प्रतिमा के समक्ष दीया बत्ती जलाकर नारियल, मखाणा, बताशा, मिश्री, फल, चूरमा इत्यादि सात्त्विक पदार्थों का प्रसाद चढाते हैं। प्रसाद चढाकर तीर्थक राजारामजी की आरती गाकर अपने भावी मुखमय, मंगलमय जीवन की मन्नतें मांगते तथा वे समाधि के समक्ष रखे कलश में मुद्रा दान करते हैं जिसका उपयोग राजाराम आश्रम तीर्थ धाम की संचालन व्यवस्था में किया जाता है तीर्थक अपनी यात्रा के अन्त में सन्त श्री राजारामजी महाराज की समाधि की परिक्रमा कर राजू देव से भावात्मक अनुमति लेकर लौटने की तैयारी करते हैं। सन्त श्री राजाराम आश्रम तीर्थ के प्रति जिज्ञासा रखने वाले भक्तों को जिस भावना एवं विधि से आश्रम स्थित मूर्ति की पूजा अर्चना करनी चाहिये उसकी जाणकारी कुछ पदों में इस प्रकार है :
सुख चाहे जो आपका, भजले राजाराम । 
करले दर्शन सन्त के, पहुंच उसके धाम।।
जो भी चाहे पूजना, देवत राजू राम । 
पहुंचे सीधा शिकारपुरा, करने तीर्थ धाम ।।
भजना राज देव को, पहुंच उसके धाम । 
सिमरना श्रद्धा भाव से, लेकर उसका नाम ।। 
चढाना राजू देव को, ताजे फल फूल । 
श्रीफल चढाना चूरमा, ओर कन्द मूल ।। 
करना दीया देव को, करना अगर धूप । 
गाना गुरु की आरती, निरख मूर्त रूप ।। 
मांगे उचित मांगना, करके निर्मल मन । 
करेगा मंशा की पूर्ति, कहता मेरा मन ।। 
पूजा जिसने सन्त को, किया उत्तम काम । 
लौटा नहीं संसार में, पाया मुक्ति धाम।। 
जीवन क्षणिक है सोच लो, बीता अवसर जाय । 
कर लो दर्शन देव के, शिकारपुरा में जाय ।। 
जय राजारामजी की जय


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