कलबी समाज का इतिहास - Latest Mahiti

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कलबी समाज का इतिहास

 कलबी समाज का इतियास:कलबियों के इतिहास का महत्व

कलबियों का इतियास


कलबी समाज के इतिहास की शुरुआत


   कलबियों कि इतिहास अपना अलग महत्व रखता है। इतिहास किसी देश स्थान संगठन या जाति विशेष का हो सकता है इतिहास का महत्व और उसकी उपयोगिता निर्विवाद है। किसी जाति विशेष के इतिहास की उपयोगिता तो और अधिक महत्व की बन जाती है जिसके लिए वह लिखा हुआ होता है। इस स्थान पर लेखक का उद्देश्य केवल कलबियों के इतिहास के महत्व को बताने तक ही सीमित है।

कलबी समाज को सीख

 कलबियों का इतिहास कलबियों की आने वाली पीढ़ियों को नहीं दिशा, दृष्टि प्रेरणा, चेतना, गति देने में सहायक सिद्ध होगा हो सकता है कलबी जाती अपने इतिहास का अवलोकन कर अपने पुरखों द्वारा की गई भूलों से सबक लेकर भविष्य में आने वाले संभावित भूलों से बचाव कर सकती है।

     ऐतिहासिक जानकारी के अभाव में कोई जाति आगे नहीं बढ़ सकती भारतवर्ष में लगभग 15 से भी अधिक भेद वाले कुल भी निवास करते हैं जिसके अपने-अपने अलग इतिहास है केवल आज नावेद वाला समुदाय ही ऐसा है इसका कोई पुराना इतिहास नहीं पुराने इतिहास के अभाव के कारण ही आज नकुल भी समाज आज भी अन्य फीदवाले कुलियों की तुलना में पिछड़ा हुआ है परंतु आधुनिक युग में ऑंजणा कलबी समाज ने बहुत ही तरक्की की है।

       कलियों का इतिहास कवियों के उत्थान की श्रंखला की जूती कड़ियों का इतिहास माना जाता है कलियों के पुरखों ने किस प्रकार की सामाजिक राजनीतिक आर्थिक परिस्थितियों में रहकर अपना अस्तित्व बनाए रखा उसकी जानकारी केवल उनके इतिहास से ही जानी जा सकती है इतिहास हमें भूतकाल इन सामाजिक व्यवस्था का ज्ञान कराता है कलियों के ऐतिहासिक स्रोत हमें यह बताते हैं कि प्राचीन भारत में स्त्रियों के दो करम हुआ करते थे, युद्ध और कृषि। वे संकटकाल में अपनी वह दूसरों की रक्षा के लिए युद्ध किया करते थे युद्ध के पश्चात जब शांति स्थापित हो जाती थी उस समय वह अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि कर्म किया करते थे इस प्रकार क्षत्रियों के दोहरे कर्म हुआ करते थे:-


क्षत्रिय प्राचीन काल में, करते दोय काज ।

पहला रण में जूझना, दूजा कृषि काज ।।


कलबी का "हली क्षत्रिय" कहलाना

बीतते समय के साथ जब क्षत्रिय समाज के लोगों ने शांति काल में अपने आप को 12 मास तक कृषि कार्य में व्यस्त कर लिया तब उनको क्षत्रिय नाम से पुकारने के स्थान पर कृषिक अथवा खेडुत क्षत्रिय कहा जाने लगा। जब कोई भी व्यक्ति कृषि कर्म में लग जाता है तब हल उसके लिए अति आवश्यक उपकरण बन जाता है। हल के अभाव में कृषि कर्म नहीं किया जाता। जब कोई व्यक्ति हल से खेती करने लग जाता है तब उनको हली के नाम से पुकारते हैं। जब किसी क्षत्रीय का स्थाई धंधा हल चलाना हो जाता है तब उसको केवल क्षत्रिय नाम से पुकारने की बजाय "हली क्षत्रिय" के नाम से पुकारते हैं। जब प्राचीन:काल में क्षत्रिय ने हल का कर्म किया तब उनको हली क्षत्रिय कहा जाने लगा है।

 उक्त प्रकार "हली क्षत्रिय" कहलाने की परंपरा मध्यकाल तक चलती रही पर जब भारतवर्ष पर मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया तब मुसलमानों ने फारसी भाषा का प्रसार प्रचार करने के लिए हिंदुस्तानी भाषा के स्थान पर फारसी भाषा के पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग बढाना प्रारंभ कर दिया। जब फारसी भाषा का प्रभाव बढ़ने लगा तब फारसी भाषा के एक शब्द "कुळबा" जिसका पर्याय हिंदुस्तानी भाषा में 'हल' होता है के स्थान पर प्रयोग में लाया जाने लगा। जब हल के स्थान पर फारसी भाषा का शब्द "कुळबा" प्रयोग में आने लगा तब उस समय से क्षत्रिय हल की सहायता से काम करते थे उनको "हली क्षत्रिय" कहा जाता था पर फारसी भाषा के अभाव के कारण उनको "हली क्षत्रिय" की बजाए "कुलबी क्षत्रिय" कहा जाने लगा। उक्त प्रकार "हली क्षत्रिय" का फारसीकरण होकर "कुळबी क्षत्रिय" जुमला अस्तित्व में आ गया। जिसका अपभ्रंश होकर "कलबी क्षत्रिय" हो गया।

कलबी का "कलबी क्षत्रिय" कहलाना

    लेकिन उक्त प्रकार "कुलबी क्षत्रिय" कहलाने का इतिहास भी अधिक लंबा नहीं चल पाया। जब "कुलबीर क्षत्रिय" की युद्ध करने की भूमिका मुस्लिम शासन काल में लगभग समाप्त हो गई और "कुलबी" के साथ जुड़ा हुआ क्षत्रिय नाम अर्थहीन हो गया तब मध्ययुग के मध्य तक आते-आते कुलबियों के साथ जुड़ा ऐतिहासिक क्षत्रिय शब्द का विलोपन हो गया और उनको जब "कलबी क्षत्रिय" की बजाय केवल कुलबी कहा जाने लगा तब केवल "कलबी" के नाम से पुकारा जाने लग गया। और उनकी गिनती क्षत्रिय वर्ण की जातियों की बजाय वैश्य वर्ग की जातियों में होने लग गई।

   जब कुलबियों की गिनती क्षत्रियों की बजाय वैश्य वर्ण में होने लगी तब "कलबी क्षत्रिय" के मन में कुछ हीन भावना जरूर उत्पन्न हुई परन्तु उनका सामाजिक महत्व ज्यों का त्यों बना रहा। उनमें प्राचीन शक्तियों के गुण विद्यमान रहने के कारण समाज में उनकी प्रतिष्ठा बनी रही। वे अच्छे काश्तकार (कृषक) बने। वे अच्छे समाज सेवक तथा पक्षपात रहित न्याय कर्ता बने रहे।

कलबी समाज का चरित्र

    उनका चरित्र ऊंचा होने के कारण उनको पटेल, देसाई, चौधरी, जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहने का अवसर सदा मिलता रहा वह करोड़ों के दातार बने रहे जिनकी जानकारी ऐतिहासिक स्रोतों में इस प्रकार पंक्तियों में मिलती है:-


कलबी लारे करोड़,

करोड़ों लार कलबी नहीं।


   उक्त कथन की संदर्भ में "राजमाला" वॉल्यूम दो पृष्ठ संख्या 243 पर अंग्रेजी में भी एक प्रद्यावली इस प्रकार लिखी हुई देखने में आती है:-


Tens of million's Follow the koonbee

But koonbee follows no man.


   कलबी बहुत दयालु जाती हैं। उनके घर पहुंचा कोई भी अभ्यागत भूखा नहीं लौटता है:-


कलबी दयालु जात बड़ी, खिलाकर के खाय।

अभ्यागत आया आंगणा भूखा कभून जाए।।


     कलबी जीव मात्र पर दया करने वाला समुदाय है अगर कोई भी याचक कलबी के घर पहुंच जाता है तो वह अपनी थाली में पड़ोसी रोटी भी मांगने पर सहर्ष देना स्वीकार कर लेता है:-


कलबी जैसा दूसरा देखा नहीं दातार।

देता दान स्वरूप को खुले हाथ दातार।।


    कलबी कि भूपति होने के संबंध में कहीं ऐतिहासिक ग्रंथों में इस प्रकार भी लिखा हुआ मिलता है:-


"जहां जहां मेघ गरजे, वहां वहां कलबी भूपति"


कुलबी केबल नाम मात्र से भूपति नहीं होते वे अपनी भूमि पर खुद काश्त कर करोड़ों का पेट पालते हैं:-


कल भी पाले करोड़ों को अगर चुराके एक

अनूप जावे बहू गाना जो तेरा खेत।


   उक्त प्रकार कुलबियों के इतिहास का कुलबी समुदाय के लिए बड़ा महत्व है। अगर प्राचीन ऐतिहासिक स्रोतों में कलबियों की सामाजिक भूमिका के विषय में उल्लेख नहीं होता तो आज का कलबी समाज अपने पूर्वजों के इतिहास के संबंध में कैसे जान पाता? 

कलबियों का इतिहास कलबी समुदाय को विकास की ओर ले जाने का पथ प्रदर्शन करता है।

कलबियों का सम्पूर्ण इतिहास जानने के लिए धन्यवाद ।।

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