लच्छ कोष जो गुरु बसै | lachchh kosh jo guru basai Kabir ke dohe
रविवार, 23 जनवरी 2022
कबीर के दोहे
लच्छ कोष जो गुरु बसै, दीजै सुरति पठाय।
शब्द तुरी असवार है, छिन आवै छिन जाय ॥
Kabir ke dohe
कबीर के दोहे
लच्छ कोष जो गुरु बसै, दीजै सुरति पठाय।
शब्द तुरी असवार है, छिन आवै छिन जाय ॥
lachchh kosh jo guru basai, deejai surati pathaay.
shabd turee asavaar hai, chhin aavai chhin jaay .
लच्छ कोष जो गुरु बसै, दीजै सुरति पठाय।
शब्द तुरी असवार है, छिन आवै छिन जाय ॥
हिंदी अर्थ :- अगर गुरु कोसों दूर निवास करते हों, तो भी अपना हृदय उनके चरण-कमलों में अर्पित करते रहो। गुरु के सदुपदेश रूपी घोड़े पर सवार होकर अपने हृदय से गुरुदेव के पास क्षण-क्षण आवागमन करते रहना चाहिए।
Kabir ke dohe
कबीर के दोहे
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलें न मोष ।गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष ॥
हिंदी अर्थ :-गुरु के बिना ज्ञान नहीं पैदा होता, गुरु के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु के बिना लिखे कोई भी सत्य का साक्षात्कार नहीं कर सकता और गुरु के बिना कोई भी दोष नहीं मिटता ।
Kabir ke dohe
कबीर के दोहे
लच्छ कोष जो गुरु बसै, दीजै सुरति पठाय।शब्द तुरी असवार है, छिन आवै छिन जाय ॥
हिंदी अर्थ :-अगर गुरु कोसों दूर निवास करते हों, तो भी अपना हृदय उनके चरण-कमलों में अर्पित करते रहो। गुरु के सदुपदेश रूपी घोड़े पर सवार होकर अपने हृदय से गुरुदेव के पास क्षण-क्षण आवागमन करते रहना चाहिए।
Kabir ke doheकबीर के दोहेगुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान ।तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्हीं दान ॥
हिंदी अर्थ :- गुरु के समान कोई दाता नहीं और शिष्य के सदृश याचक नहीं। तीनों लोक की सम्पत्ति से भी बढ़कर • ज्ञान-दान गुरु ने दे दिया है।
Kabir ke dohe
कबीर के दोहे
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय ।जनम जनम का मोरचा, पल में डारे धोय ॥
हिंदी अर्थ :-कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने हेतु गुरु का ज्ञान जल है। जन्म-जन्मान्तरों की बुराइयों को गुरुदेव एक पल में ही धो डालते हैं।
Kabir ke dohe
कबीर के दोहे
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहि ।कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहिं ॥
हिंदी अर्थ :-गुरु को अपना सब कुछ मानकर उनकी आज्ञा का पालन करो। कबीरदास जी कहते हैं कि ऐसे शिष्य को तीनों लोकों में भय नहीं होता।
Kabir ke dohe
कबीर के दोहे
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय ।कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥
हिंदी अर्थ :-साधु को व्यवहार में भी गुरु की आज्ञानुसार ही आना-जाना चाहिए। कबीरदास जी कहते हैं कि सन्त वही है जो जन्म-मृत्यु से छुटकारा पाने हेतु मोक्ष के लिए साधना करता है।
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