कांकर-पाथर जोड़ के मस्जिद लियो बनाय | Masjid Leo was built by joining the Kankar-Pathar joint,
कांकर-पाथर जोड़ के मस्जिद लियो बनाय,
तापे मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा भयो खुदाय ॥Build a mosque leo by adding Kankar-Pathar, Tape Mulla Bang De, Kya Bahira Bhayo Khuday ॥
कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय ता उपर मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय meaning
कांकर-पाथर जोड़ के मस्जिद लियो बनाय,
कांकर पाथर जोरि कै दोहे द्वारा क्या संदेश दिया गया है?
कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित ?
पाथर पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजूं पहाड़,
घर का चकिया कोई न पूजै, जाके पीसा खाय। हिन्दी अर्थं
कबीर माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ हिन्दी अर्थं
गुरुदेव को अंग - कबीर ग्रंथावली
1
सब धरती कागज करूं, लिखनी सब बन राय।
सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाया॥
2
मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पांव।
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव॥
कठिन शब्दार्थं 🔰🔰
जल परमाने माछली, कुल परमाने शुद्धि |
जाको जैसा गुरु मिला, ताको तैसी बुद्धि ॥
कठिन शब्दार्थं 🔰🔰
हिन्दी अनुवाद :- जल के परिमाप के अनुसार ही छोटी-बड़ी मछलियां तालाब व नदी आदि में होती हैं और ऊंचे-नीचे कुल के परिमाप के अनुसार ही प्रायः स्वाभाविक कम-विशेष शुद्धि रहती है। ठीक इसी प्रकार जिसको जैसा गुरु मिलता है, उसकी वैसी ही बुद्धि प्राप्त होती है।
जैसी प्रीति कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय ।
कहैं कबीर ता दास का, पग न पकड़े कोय॥
कठिन शब्दार्थं 🔰🔰
गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कछु नाहिं।
उन्हीं को परनाम करि, सकल तिमिर मिट जाहि॥
कठिन शब्दार्थं 🔰🔰
हिन्दी अनुवाद :- गुरु की मूर्ति, चेतना हेतु आगे खड़ी है, उसमें दूसरा कोई भेद नहीं है। उन्हीं के सेवा भाव से प्रणाम कर आराधना करो, फिर सब अंधकार नष्ट हो जायेगा।
6गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलें न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु के बिना ज्ञान नहीं पैदा होता, गुरु के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु के बिना लिखे कोई भी सत्य का साक्षात्कार नहीं कर सकता और गुरु के बिना कोई भी दोष नहीं मिटता।
7लच्छ कोष जो गुरु बसै, दीजै सुरति पठाय।
शब्द तुरी असवार है, छिन आवै छिन जाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- अगर गुरु कोसों दूर निवास करते हों, तो भी अपना हृदय उनके चरण-कमलों में अर्पित करते रहो। गुरु के सदुपदेश रूपी घोड़े पर सवार होकर अपने हृदय से गुरुदेव के पास क्षण-क्षण आवागमन करते रहना चाहिए।
8गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्हीं दान॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु के समान कोई दाता नहीं और शिष्य के सदृश याचक नहीं। तीनों लोक गुरु की सम्पत्ति से भी बढ़कर तो ज्ञान-दान गुरु ने दे दिया है।
9कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय ।
जनम-जनम का मोरचा, पल में डारे धोए ॥
कठिन शब्दार्थं 🔰🔰
10
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहि ।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहिं ॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु को अपना सब कुछ मानकर उनकी आज्ञा का पालन करो। कबीरदास जी कहते हैं कि ऐसे शिष्य को तीनों लोकों में भय नहीं होता।
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय ॥
हिन्दी अनुवाद :-साधु को व्यवहार में भी गुरु की आज्ञानुसार ही आना-जाना चाहिए। कबीरदास जी कहते हैं कि सन्त वही है जो जन्म-मृत्यु से छुटकारा पाने हेतु मोक्ष के लिए साधना करता है।
12जो गुरु बसै बनारसी, सीष समुन्दर तीर ।
एक पलक बिसेर नहीं, जो गुण होय शरीर॥
हिन्दी अनुवाद :-जो गुरु वाराणसी में निवास करें और शिष्य समुद्र के निकट हो, जो गुरु का गुण शिष्य के शरीर में होगा, वो गुरु को एक पल भी नहीं भूल सकता।
13गुरु को कीजै दण्डवत कोटि कोटि परनाम।
कीट न जाने भृंग को, गुरु कर ले आप समान॥
कठिन शब्दार्थं 🔰🔰
हिन्दी अनुवाद :-गुरुदेव को दण्डवत एवं करोड़ों बार प्रणाम करो। कीड़ा भृंगी के महत्व को नहीं जानता, लेकिन भृंगी कीड़े को अपने सदृश बना लेती है, ठीक इसी प्रकार शिष्य को गुरु अपने सदृश बना लेते हैं।
14गुरु सों प्रीति निबाहिये, जेहि तत निबहै संत।
प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत॥
हिन्दी अनुवाद :-किसी भी स्थिति में जैसे बने वैसे गुरु के प्रेम का निर्वाह करो। समीप होते हुए भी प्रेम के बिना वे दूर हैं; और यदि प्रेम है, तो गुरु स्वामी पास ही हैं।
15गुरु पास को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त ।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महन्त ॥
हिन्दी अनुवाद :-गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सभी सन्त जानते हैं। पारस तो लोहा को सोना ही बनाता है, लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेते हैं।
16गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाईं चोट ॥
हिन्दी अनुवाद :-गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, अन्दर से हाथ का सहारा देकर बाहर से चोट मार-मारकर और गढ़-गढ़ कर शिष्य की बुराई को गुरु निकालते हैं।
17गुरु सों ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजिये रान ।
बहुतक भोंदूं बहि गये, राखि जीव अभिमान॥
हिन्दी अनुवाद :-गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए चाहे अपने सिर की भेंट चढ़ानी पड़े, लेकिन यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार में बह गये, गुरु पद-पोत में न लगे।
18गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर ।
आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥
हिन्दी अनुवाद :-गुरु की मूर्ति चन्द्रमा की भांति है और सेवक की आंखें चकोर के समान अतः आठों पहर गुरु मूर्ति की ओर ही निहारते रहो।
19पंडित पढ़ि गुनि पचि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान ।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सन्त शब्द परनाम ॥
हिन्दी अनुवाद :-विद्वान पंडित शास्त्रों को पढ़-गुनकर पच मरते हैं, लेकिन गुरु के बिना उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। सत्य शब्दों के प्रमाणानुसार ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
20शिष खांडा गुरु मसकला चढ़े शब्द खरसान।
शब्द सहैं सम्मुख रहें, निपजै शीष सुजान॥
हिन्दी अनुवाद :-शिष्य तलवार है, गुरु सिकलीगर हैं, वे निर्णय शब्द रूपी शान पर उसे चढ़ाकर मस्कला देते हैं। जो गुरु के शब्द की रगड़ सहता है और सम्मुख रहता है, वह बुद्धिमान शिष्य ज्ञान से परिपूर्ण हो जाता है।
21अंह अगिन निशि दिन जरै, गुरु सौ चाहे मान ।
ताको जम न्योता दिया, होड़ हमार मेहमान ॥
हिन्दी अनुवाद :-जो अहंकार की ज्वाला में दिन-रात सुलगते हैं और गुरु से अपना मान-सम्मान चाहते हैं, उनको यम ने निमन्त्रण दिया है कि हमारे मेहमान बनो, गुरु शरण योग्य तुम नहीं हो सकते।
22गुरु शरणागति छाड़ि के, करै भरोसा और ।
सुख सम्पत्ति की कह चली, नहीं नरक में ठौर ॥
हिन्दी अनुवाद :-गुरु की शरणागति को छोड़कर जो अन्य दैव-गौसाई का भरोसा करता है, उसकी सुख-सम्पत्ति की कौन बात चलाये, उसे तो नरक में भी जगह नहीं मिल सकती।
23ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास ।
गुरु सेवा ते पाइये, सद्गुरु चरण निवास ॥
हिन्दी अनुवाद :- ज्ञान, समागम, प्रेम, सुख, दया, भक्ति, सत्य-स्वरूप में विश्वास और सद्गुरु की शरण में निवास ये सभी गुरु की सेवा से ही प्राप्त हो सकते हैं।
24राजा की चोरी करे, रहै रंक की ओट ।
कहैं कबीर क्यों उबरै, काल कठिन की चोट॥
हिन्दी अनुवाद :- राजा के घर चोरी करके यदि कोई दरिद्र की आड़ लेकर बचना चाहे, तोकैसे बचेगा? कबीरदास जी कहते हैं कि सद्गुरु से मुख छिपाकर और कल्पित देवी-देवताओं की शरण लेकर काल की कठिन चोट से जीव कैसे बच सकता है।
25सुनिये सन्तो साधु मिलि, कहहिं कबीर बुझाय
जेहि विधि गुरु सों प्रीति है, कीजै सोइ उपाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- कबीरदास जी समझाते हुए कहते हैं कि ऐ साधु-सन्तों! सब एकजुट होकर सुनो, जिस प्रकार गुरु से दृढ़ प्रेम हो, वही उपाय करना चाहिए।
26जो गुरु पूरा होय तो, शीषहि लेय निबाहि शीष भाव सुत्त जानिये, सुत ते श्रेष्ठ शिष आहि आहि ॥
हिन्दी अनुवाद :- अगर विवेकपूर्ण गुरु मिल जाये, तो वह योग्य शिष्य को निभा लेता है। शिष्य-भाव पुत्र-भाव एक समझो, फिर भी पुत्र से शिष्य श्रेष्ठ होता है, क्योंकि पुत्र सांसारिक स्वार्थवश है और शिष्य कल्याण इच्छुक है।
27लौ लागी विष भागिया, कालख डारी धोय ।
कहैं कबीर गुरु साबुन सों, कोइ इक अजल होय ॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु की भक्ति, साधना में मन लगाने से विषय वासना रूपी विष दूर हो जाता है, वह शिष्य हृदय के विकार रूपी काजल को धो डालता है। कबीर कहते हैं कि गुरु के ज्ञान रूपी साबुन से कोई-कोई विरला ही उज्ज्वल होता है।
28कहै कबीर तजि भरम को, नन्हा है कर पीव।
तजि अहं गुरु-चरण गहु, जम सों बाचै जीव
हिन्दी अनुवाद :- कबीरदास जी कहते हैं कि भ्रम को त्यागो, नन्हा बच्चा बनकर गुरु वचनरूपी दूध को पीयो। इस प्रकार अहंकार त्यागकर गुरु के चरणों की शरण ग्रहण करो, तभी जीव पाप से छुटकारा पा सकता है।
29
तन मन शीष निछावरै, दीजै सरबस प्रान।
कहैं कबीर दुख सुख सहैं, सदा रहे गलतान
हिन्दी अनुवाद :- शिष्य अपना तन, मन, प्राण एवं सर्वस्व को गुरु के चरणों में समर्पित कर दे। कबीरदास जी कहते हैं कि इसमें जो दुख-सुख हो, वह सहे और हमेशा गुरु-भक्ति में लीन रहे।
30
साबुन बिचारा क्या करे, गांठे राखे मोय ।
जल सों अरसा परस नहिं, क्योंकर ऊजल होय
हिन्दी अनुवाद :- साबुन बेचारा क्या करे, जब उसे गांठ से बांध रखा है। जल से स्पर्श करता ही नहीं, फिर कपड़ा कैसे उज्ज्वल हो?
31
कोटिन चन्दा उगही, सूरज कोटि हजार ।
तीमिर तो नाशें नहीं, बिन गुरु घोर अंधार
हिन्दी अनुवाद :- करोड़ों चन्द्रमा और हजारों करोड़ों सूर्य उदित हों, तो भी अज्ञान अन्धकार का नाश नहीं हो सकता। अतः बिना गुरु के घोर अज्ञान का ही अंधकार विद्यमान रहेगा।
32
तब ही गुरु प्रिय बैन कहि, शीष बढ़ी चित प्रीत ।
ते रहिये गुरु सन मुखां, कबहूं न दीजै पीठ
हिन्दी अनुवाद :- शिष्य के हृदय में बढ़ी हुई प्रीति देखकर ही गुरु मोक्ष की प्राप्ति हेतु उपदेश करते हैं। अतः गुरु के सम्मुख रहो, कभी विमुख न बनो।
33
अबुध सुबुध सुत, मातु पितु, सबहिं करे प्रतिपाल ।
अपनी ओर निबाहिये, सिख सुत गहि निज चाल
हिन्दी अनुवाद :- निर्बुद्धि, बुद्धिमान माता-पिता सभी पुत्रों का प्रतिपाल करते हैं। पुत्र के समान ही शिष्य को गुरुदेव अपनी मर्यादा की चाल से निभाते हैं।
34
करै दूरि अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदेय।
बलिहारी वे गुरुन की हंस उबारि जु लेय ॥
हिन्दी अनुवाद :- ज्ञान का अंजन लगाकर शिष्य के अज्ञानता का दोष दूर जाता है। उन गुरुजनों पर बलिहारी जाऊं, जो जीवों को भव से बचा लेते हैं।
35
सोइ सोइ नाच नचाइये, जेहि निबहे गुरु प्रेम।
कहैं कबीर गुरु प्रेम बिन, कितुहुं कुशल नहिं क्षेम ॥
हिन्दी अनुवाद :- स्वयं के मन-इन्द्रियों को ऐसा नाच नचाओ, जिससे गुरु के प्रति प्रेम बढ़ता जाय। कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु के प्रेम बिना, कहीं कुशल क्षेम नहीं है।
36
भौ सागर की त्रास ते, गुरु की पकड़ो बाहि ।
गुरु बिन कौन उबारसी, कौं जल धारा मांहि ॥
हिन्दी अनुवाद :- भव-सागर से बचने हेतु गुरु का हाथ पकड़ो। गुरु के बिना भव-सागर से कौन तार सकता है?
37
गुरु लोभी शिष लालची, दोनों खेलें दांव ।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाकर की नांव ॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु लोभी और चेला लालची हों तो दोनों अपने-अपने दांव खेलते हैं अर्थात् लोभी गुरु तथा लालची चेला दोनों नरक में ठेलिम-ठेला। वे दोनों ही अज्ञान स्वरूप पत्थर की नाव पर सवार होकर डूब जायेंगे।
38
जानीता बूझा नहीं बूझि किया, नहिं गौन ।
अंधे को अंधा मिला, राह बतावे कौन ॥
हिन्दी अनुवाद :- परमार्थ विवेकी गुरु से जानबूझ-समझकर पथ में नहीं चला। अन्धों को अन्या मिल गया, तो फिर मार्ग कौन बतायेगा।
39
सद्गुरु ऐसा कीजिये, लोभ मोह भ्रम नाहिं ।
दरिया सो न्यारा रहे, दीसे दरिया माहिं ॥
हिन्दी अनुवाद :- सद्गुरु ऐसा करो, जिसका चित्त लोभ, मोह एवं भ्रम रहित हो, संसार में घूमते-दिखते हुए भी संसार-सागर से अलग रहे।
40
पूरा सत्गुरु न मिला, सुनी अधूरी सीख ।
स्वांग यती का पहिनिके, घर-घर मांगी भीख ॥
कबीर गुरु है धार का, होंटू बैठा चेल ।
मूड़ मुड़ाया सांझकं, गुरु सबेरे ठेल॥
हिन्दी अनुवाद :- यदि शिष्य बाजार में बैठने वाला प्रवृत्ति मार्ग का है और जो गुरु निवृत्ति-परायण है, तो नहीं निपटता। शाम सिर मुड़ाकर संन्यासी हुए और सुबह गुरु को छोड़कर अकेले अवधूत बन गये।
41
गुरु नाम है गम्भ का, शीष सीख ले सोय।
बिनु पद बिनु मरजाद नर, गुरुशीष नहिं कोय॥
हिन्दी अनुवाद :- सत्य का मार्ग बताने वाला ही गुरु है और शिष्य वह है जो शिक्षा ग्रहण करे। इस प्रकार गुरु-शिष्य की पद मर्यादा के बिना कोई गुरु-शिष्य नहीं होता।
42
गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव ।
सोइ. गुरु नित बन्दिये, शब्द बतावे दाव॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु-गुरु में बड़ा भेद है, उनके विचार भी भिन्न-भिन्न होते हैं। सदैव वहीं गुरु पूजनीय हैं, जो शब्द-सार परखने का दांव बताते हैं।
43
जाका गुरु है आँधरा, चेला खरा निरंध।
अंधे को अंधा मिला, पड़ा काल के फन्द॥
हिन्दी अनुवाद :- जिसका गुरु ही विवेक रहित हो, तो वह शिष्य भी स्वयं महा अविवेकी होता है। अविवेकी गुरु को अविवेकी शिष्य मिल गया, फलस्वरूप दोनों कल्पना के फलीभूत हो गये।
44
आगे अन्धा कूप में, दूज लिया बुलाय।
दोनों बूड़े बापुरे, निकसे कौन उपाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- पहले से ही अविवेकी गुरु धोखे के कुएं में गिरा पड़ा है, दूसरे शिष्य को भी बुलाकर उसी में डाल दिया। बेचारे दोनों ही उसी में डूब गये, वे किस उपाय से निकलें?
45
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर-फिर गोता खाहि॥
हिन्दी अनुवाद :- जो गुरु जाति, रंग-रूप, विद्यादि देखकर ही किया जाता है, वो वास्तविक सद्गुरु को नहीं परख पाया। ऐसे मनुष्य बार-बार भवसागर में डूबते हैं।
46गु अंधियारी जानिये, रू कहिये परकाश ।
मिटि अज्ञाने ज्ञान दे, गुरु नाम है तास ॥
हिन्दी अनुवाद :- गु नाम अज्ञान है, रू कहते हैं ज्ञान को। जो अज्ञान के अंधेरे को मिटाकर ज्ञान दे, वही गुरु है।
47
सांचे गुरु के पक्ष में, मन की दे ठहराय।
चंचल से निश्चल भया, नहिं आवै नाहिं जाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- सद्गुरु के में चित्त लगा दो, तो चंचलता छोड़कर तुम निश्चल पद पा पक्ष लोगे और जन्म-मरण के बंधन से छूटकर मोक्ष पा लोगे।
48
जा गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिव का जाय ।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लगाय॥
हिन्दी अनुवाद :- जिस हिगुरु से अज्ञान का अंधकार दूर न हो और हृदय का शक न मिटे, ऐसे गुरु झूठ समझो और उसे छोड़ने में देर न करो।
49जा गुरु को तो गम नहीं, पाहन दिया बताय।
शिष शीधे बिन सेइया, पार न पहुंचा जाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- जो गुरु ज्ञान का मार्ग न दिखाये, वह गुरु शिष्य को केवल पत्थर को पूजना बता देता है। वह शिष्य उस मार्ग पर चलकर अन्ततः डूब जाता है अर्थात् पार नहीं होता।
50
कहता हूं कहि जात हूं, देता हूं हेला ।
गुरु ही करनी गुरु जाने चेला की चेला ॥
हिन्दी अनुवाद :- के कहता हूं और निर्णय सुनाये जाता हूं। गुरु अपना किया भोगेंगे और सुना शिष्य अपना किया भोगेंगे।
51
गुरु बिचारा क्या करे, हृदय भया कठोर ।
नौ नेजा पानी चढ़ा, पथर न भीजी कोर॥
हिन्दी अनुवाद :- सद्गुरु बेचारे क्या करें, जब शिष्य का हृदय कठोर है। पत्थर पर भले ही चौव्वन हाथ पानी चढ़ जाय, लेकिन वह उसकी कोर तक भी नहीं भिगो पाता।
52
गुरुवा तो सरता भया, कौड़ी अर्थ पचास
अपने तन की सुधि नहीं, शिष्य करन की आस ॥
हिन्दी अनुवाद :- धन के लोभी गुरुओं की कमी नहीं है, उन्हें अपने शरीर का भी होश नहीं रहता कि हमारा आचरण कैसा है? परन्तु शिष्य उनसे मोक्ष की शिक्षा पाने की आशा करते हैं।
53
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
हिन्दी अनुवाद :- यह शरीर तो जहर की बेल है और सद्गुरु अमृत की खान है। यदि अपना सिर काटकर सच्चे सद्गुरु का मिलना सम्भव हो, तो भी सस्ता समझो।
54
गुरु बिचारा क्या करै, शब्द न लागै अंग।
कहै कबीर मैली गजी, कैसे लागे रंग॥
हिन्दी अनुवाद :- वो गुरु बेचारा क्या करे, जब उसका सिखाया शिष्य के दिमाग में नहीं घुसता-जैसे मैली चादर पर रंग कदापि नहीं चढ़ता।
55
झूठे गुरु के पक्ष को, तज न कीजे वार ।
द्वार न पावै शब्द का, भटके बारम्बार ॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु के झूठे होने पर उसका साथ तत्काल छोड़ दो। क्योंकि उसके द्वारा कहे गये वचनों से कभी मोक्ष नहीं मिलता। जबकि जीव भ्रम में पड़कर बारम्बार भटकता ही रहता है।
56
कबीर बेड़ा सार का, ऊपर लादा सार ।
पापी का पापी गुरु, यो बूड़ा संसार ॥
हिन्दी अनुवाद :- कंबीरदास जी कहते हैं कि जिस प्रकार लोहे की नाव पर लोहे का भार लाद देने से वह डूब जाती है, ठीक उसी प्रकार पापी मनुष्य को यदि पापी गुरु मिल जाये तो संसारी डूब जाते हैं।
57
बंधे को बन्धा मिला, छूटे कौन उपाय ।
कर सेवा निरबंध की, पल में लेय छुड़ाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- जब एक बंधे हुए को दूसरा बंधा हुआ मिल जाये तो वह छूट नहीं सकता। अतः निर्बन्ध की सेवा करो, वह पल में छुड़ा लेगा।
58गुरु मिला तब जानिये, मिटै मोह तन ताप ।
हरष रोष व्यापे नहीं, तब गुरु आपे आप ॥
हिन्दी अनुवाद :- जब अपने तन-मन के पाप मिट जायें, तब जानो गुरु मिल गये। मन में यदि हर्ष-शोक का वास न हो, तो ऐसी अवस्था में वो अपने आप गुरु रूप हो जायेगा।
59
गुरु का तो घर-घर फिरे, दीक्षा हमारी लेह ।
कै बूड़ों कै ऊबरो, टका परदानी देह ॥
हिन्दी अनुवाद :- गुरु घर-घर द्वार-द्वार पुकारते फिरते हैं कि हमसे मन्त्र ले लो। चाहे तुम कैसी भी शिक्षा ग्रहण कर लो, हमें पैसा-धोती से काम है।
60
जाका गुरु हैं गिरही, गिरही चेला होय ।
कीच कीच के धोवते, दाग न छूटे कोय॥
हिन्दी अनुवाद :- जिसका गुरु गृहस्थ में फंसा है, उस गृहस्थ शिष्य का कल्याण कैसे होगा? कीचड़ का दाग क्या कीचड़ से साफ हो सकता है?
61
गुरु कीजिये जानि के, पानी पीजैं छानि ।
बिना बिचारे गुरु करे, जरै चौरासी खानि॥
हिन्दी अनुवाद :- जिस प्रकार जल छानकर पीते हैं, ठीक उसी प्रकार गुरु का चुनाव भी सोच-समझकर करना चाहिए। जो बिना किसी विचार के गुरु का चुनाव करता है, वह इस संसार के चौरासी चक्कर में भटकता रहता है।
62
ऐसा कोई न मिला, जासू कहूँ निसेक ।
जासो हिरदा भी कहूँ, सो फिर मारे डंक ॥
हिन्दी अनुवाद :- ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला, जिससे बिना किसी डर के अपनी सच्ची बातें कह सकूँ। अपने मन की बातें मैं जिससे भी कहता हूं, वही डंक मारता है।
63
स्वामी सेवक होय के, मनही में मिली जाये।
चतुराई रीझै नहीं, रहिये मन के मोय ॥
हिन्दी अनुवाद :- सेवक और स्वामी दोनों का मन एक-सा होना चाहिए। चालाकी करने वाला किसी को नहीं भाता। एक-दूसरे के मन के भाव एक से होने चाहिएं।
64
हिरदे ज्ञान न उपजै, मन परतीत न होय ।
ताको सद्गुरु कहा करे, घनघसि कुतहर न होय ॥
हिन्दी अनुवाद :- जिसके मन में विवेक, श्रद्धा, विश्वास नहीं है, उसको सद्गुरु क्या करेंगे? घास को घिसकर कुल्हाड़ी नहीं बनायी जा सकती।
65
सत की खोजन मैं फिरू, सतिया मिलै न कोय।
जब सत कूं सतिया मिले, विष तजि अमृत होय॥
हिन्दी अनुवाद :- मैं सच्चाई खोजता फिरता हूं, परन्तु मुझे कोई सत्यवादी नहीं मिला। जब किसी सच्चे को सत्यावादी मिल जाते हैं तो वह विष रहित होकर अमृत हो जाता है।
66
शिष्य पूजै गुरु आपना, गुरु पूजे सब साथ।
कहैं कबीर गुरु शीष को, मत है अगम अगाथ॥
हिन्दी अनुवाद :- शिष्य अपने गुरु को पूजता है और गुरु सब साधुओं की वन्दना करते हैं। कबीर जी कहते हैं कि गुरु शिष्य का मत अगम अपार है।
67
देश दिशान्तर मैं फिरूं, मानुष बड़ा सुकाल ।
जा देखे सुख उपजें, बाका पड़ा दुकाल ॥
हिन्दी अनुवाद :- देश-देशान्तरों में घूमकर मैंने देखा, मनुष्यों की कमी नहीं है। परन्तु जिसके दर्शन से सुख का अनुभव होता है, उनका अकाल पड़ गया है।
68
शिष किरपिन गुरु स्वारथी, मिले योग यह आय ।
कीच-कीच के दाग को, कैसे सकै छुड़ाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- कृपण-शिष्य, स्वार्थी गुरु का अच्छा संयोग पड़ गया। कीचड़ के छल्ले को कीचड़ कैसे साफ करेगा।
69
बिन सत्गुरु उपदेश, सुर नर मुनि नाहिं निस्तरे ।
लोभ नदी की धार में, कहा पड़ों नर सोय॥
हिन्दी अनुवाद :- बिना सद्गुरु के उपदेश के देवता, मनुष्य, मुनि तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी नहीं तर सकते। फिर अन्य साधारण जीव की क्या गणना है?
70
मनहिं दिया निज सब दिया, मन से संग शरीर ।
अब देवे को क्या रहा, यों कथि कहहिं कबीर ॥
हिन्दी अनुवाद :- तूने यदि अपना चित्त गुरुदेव को दे दिया, तो समझो सब कुछ दे दिया, क्योंकि चित्त (मन) के साथ ही शरीर है, वह अपने आप ही समर्पित हो गया। अब देने को बचा ही क्या?
71
जेहि खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव ।
कहैं कबीर सुन साधवा, करूं सत्गुरु की सेव॥
हिन्दी अनुवाद :- मोक्ष की प्राप्ति के लिए तो ब्रह्मा, सर-नर, मुनि और देवता सब थक गये। ऐ सन्तो! उस मोक्ष की प्राप्ति हेतु सद्गुरु की सेवा करो।
72
केत पढ़ि मुनि पचि मुए, योग यज्ञ तप लाय।
बिन सत्गुरु पावै नहीं, कोटिन करै उपाय ॥
हिन्दी अनुवाद :- बहुत-से लोग शास्त्रों को पढ़-सुनकर और योगव्रत करके मर गये, परन्तु बिना सतगुरु के, ज्ञान तथा भक्ति नहीं मिलती, चाहे कोई करोड़ों जतन करे।
73
सत्गुरु को माने नहीं, अपनी कहै बनाय।
कहैं कबीर क्या कीजिये, और मता मन माय॥
हिन्दी अनुवाद :- जो मनुष्य अपनी उल्टी-सीधी बातों को गढ़-छीलकर कहता है और सतगुरु के यथार्थ ज्ञान की बात नहीं मानते, कबीर कहते हैं-ऐसे मनुष्यों का क्या करियेगा-और मन में तो कुछ और ही बात है।
74कबीर समझा कहत है, पानी थाह बताय।
ताकूं सत्गुरु क्या करै, जो औघर डूबै जाये ॥
हिन्दी अनुवाद :- कबीर कहते हैं कि कोई अपनी-सी कहे और पानी की' थाह बताये, परन्तु उसकी बात न मानकर राही कुधार में जाकर डूब मरे तो उसके लिए क्या उपाय है? इसी प्रकार गुरु ज्ञान को न मानने वाले के लिए क्या उपाय है?
75सत्गुरु खोजो सन्त, जीव काज को चाहद्दु।
मेरो भव को अंक, आव गवन निवारहु ॥
हिन्दी अनुवाद :- हे सन्तो! अपनी आत्मा के कल्याण हेतु सत्गुरु की खोज करो और भव के अंक (छाप, दाग या पाप) मिटाकर जन्म-मरण से रहित हो जाओ।
76सत्गुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड ।
तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मण्ड ॥
हिन्दी अनुवाद :- सात द्वीप, नौखण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रह्माण्डों में सद्गुरु हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे।
77सत्गुरु के सतभाव है, जो अस भेद बताय।
धन्य शीष धन भाग तिहि, जो ऐसी सुधि पाय॥
हिन्दी अनुवाद :- सद्गुरु से ही सत्य भाव के भेद पता चलते हैं। वह शिष धन्य है तथा उसका भाग्य भी धन्य है, जो गुरु के द्वारा अपने स्वरूप की स्तुति पा गया है।
78सतगुरु मिला जु जानिये, जान उजाला होय ।
भ्रम का भांडा तोड़ि करि, रहै निराया होय ॥
हिन्दी अनुवाद :- जब तुम्हारे हृदय में ज्ञान का प्रकाश हो जाय, तब समझो सद्गुरु मिल गये। भ्रम को दूर कर निराले स्वरूप ज्ञान को प्राप्त हो जाये।
79डूबा औधर न तरै, मोहिं अन्देशा होय ।
लोभ नदी की धार में, कहा पड़ो नर सोय॥
हिन्दी अनुवाद :- कुधार में डूबा हुआ मनुष्य बचता नहीं। मुझे तो यह खतरा है लोभ की नदी धारा में ऐ मनुष्यो! तुम कहां पड़े सोते हो?
80जग में युक्ति अनूप हैं, साधु संग गुरु ज्ञान ।
तामें निपट अनूप हैं, सतगुरु लागा कान॥
हिन्दी अनुवाद :- संसार में उपमारहित युक्ति सन्तों की संगम और गुरु का ज्ञान दुखों से छुटकारे के लिए है, उसमें अत्यन्त उत्तम बात यह है कि सद्गुरु के वचनों पर ध्यान लगायें।
81करहु छोड़ कुल लाज, जो सत्गुरु उपदेश हैं।
होय तब जिव काज, निश्चय करि परतीत करू ॥
हिन्दी अनुवाद :- कुल की लज्जा छोड़कर सतगुरु के उपदेश के अनुसार कार्य करो। तभी जीव का कल्याण होगा। यह निश्चयपूर्वक विश्वास कर लो।
82जा भव-सागर मोहिं, कहु कैसे बूड़त तरै ।
गहु सत्गुरु की बाहिं, जो जल थल रक्षा करै ॥
हिन्दी अनुवाद :- इस संसार रूपी समुद्र में डूबा हुआ जीव कैसे तरेगा? इसका उपाय है, सद्गुरु का हाथ पकड़ो, जो सर्वत्र रक्षा करने वाले हैं।
83यह सत्गुरु उपदेश हैं, जो माने परतीत ।
करम भरम सब त्यागि के, चलै सो भव जल जीत ॥
हिन्दी अनुवाद :- मन विश्वास करे तो यही सद्गुरु का यथार्थ उपदेश है। सद्गुरु के उपदेशों को मानने वाला कर्म, भ्रम त्यागकर, संसार सागर से तर जाता है।
84सत्गुरु मिले जु सब मिले, न तो मिला न कोय।
मात-पिता सुत बौधवा, ये तो घर-घर होय॥
हिन्दी अनुवाद :- सद्गुरु तुम्हें मिल गये तो सब कुछ मिल गया। यदि नहीं मिले तो तुम्हें कुछ नहीं मिला। मां-बाप, बेटा-भाई ये तो घर-घर रहते हैं।
85सत्गुरु शरण न आवहीं, फिर-फिर होय अकाज।
जीव खोय सब जायेंगे, काल तिहूं पुर राज॥
हिन्दी अनुवाद :- जो लोग सद्गुरु के पास नहीं आते, वे बारम्बार इस पृथ्वी पर जन्म लेते रहते हैं। गुरु के बिना सभी संसारी भ्रष्ट हो जायेंगे, क्योंकि तीनों लोकों में मन-काल का राज है।
भक्त कवियों में कबीर का स्थान आकाश नक्षत्र के समान है। वे अंधकारमय मन को प्रकाश दिखाते हैं। कबीर के बारे में मान्यता है कि इनका जन्म 15 ज्येष्ठ शुक्ल को संवत् 1475 को काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। कहा जाता है कि जगद्गुरु रामानन्द के आशीर्वचन से विधवा ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया था, परन्तु लोक-लाज के भय से बालक के जन्म के उपरांत वह उसे लहरतारा नामक तालाब के पास फेंक गयी थी। जहां से नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पत्ति गुजर रहे थे। उन्होंने बच्चे के रोने की आवाज सुनी। बच्चे के पास गये। उनका मन ममता से पसीज गया। वे निःसंतान थे। बच्चे को ले गये और लालन-पालन करना शुरू किया। उनका नाम कबीर पड़ा।
कबीर के विचार
कबीर पढ़े-लिखे न थे। वे अपने माता-पिता के कपड़े बुनने का कार्य किया करते थे। करघे पर बैठकर कपड़ा बुनते थे और भक्ति-भाव में भरकर पदों की रचना करते थे। उनके कहे हुए पदों को लोग शौक से सुना करते थे, कुछ कंठस्थ कर लेते थे, कुछ लिख लिया करते थे। उनकी संगति में बैठने वाले हिन्दू-मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग हुआ करते थे। उनकी संगति में बैठने वाले ही लोग उनके शिष्य बनते गये। ये कबीर पंथी कहलाये। ये कबीर पंथी आज भी भारत में बड़ी संख्या में है। उनकी उपासना और पूजा पद्धति अन्य धर्म-सम्प्रदाय के लोगों से अलग हैं।
कबीर के समस्त पदों का संकलन 'बीजक कहलाता है। बीजक के 3 भाग है- रमैनी, सबद, साखी।
बाह्य आडम्बर का विरोध
कबीरदास धर्म के बाह्य आडम्बर के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों के बाह्य आडम्बर को लेकर अपने दोहों में समान रूप से फटकार सुनायी है। देखें इन पदों को —
पाथर पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजूं पहाड़,
घर का चकिया कोई न पूजै, जाके पीसा खाय ।
मूर्तिपूजा को बाह्य आडम्बर मानने के साथ-साथ कबीर ने मुसलमानों के लिए भी कहा है–