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dheere-dheere re mana



धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, रितु आये फल होय॥


dheere-dheere re mana, dheere sab kuchh hoy .maalee seenche sau ghada, ritu aaye phal hoy.



धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । 

माली सींचे सौ घड़ा, रितु आये फल होय॥

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धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।   माली सींचे सौ घड़ा, रितु आये फल होय॥


हिंदी अनुवाद :- ऐ मन! धीरज धारण कर। धीरे-धीरे सब कुछ हो जाता है। माली सैकड़ों घड़ा पानी सींचता है, लेकिन समयानुसार ही फल उगता है। 


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।

dheere-dheere re mana

कठिन शब्दार्थों🔰🔰


शब्द

अर्थं

धीरे-धीरे

धीरज धारण

मना

मन

सींचे

सींचता

सौ घड़ा

100,matki


 कबीर के दोहे धीरज पर

फिकर सबी को खा गयी, फिकरहि सबका पीर। 

फिकिर का फाका करै, ताका नाम कबीर ॥2॥ 


हिंदी अनुवाद :- चिन्ता सभी को निगल गयी, अतः सभी का गुरु चिन्ता ही बनी बैठी है। जो चिन्ता को ही निगल जाय, उसका नाम कबीर है। 


बहुत गयी थोरी रही, व्याकुल मन मत होय । 

धीरज सबको मित्र है, करी कमाई न खोय॥3॥ 


हिंदी अनुवाद :- बहुत बीत गया और थोड़ी बाकी है, मन में व्याकुलता मत लाओ। धैर्य ही सबका मित्र है, बहुत दिन की हुई कमाई समाप्त न करो। 


धीरज बुधि तब जानिये, समझें सबकी रीत । 

उनका अवगुन आप में, कबहुं न लावै मीत॥4॥ 


हिंदी अनुवाद :- धैर्य, बुद्धि तभी आई हुई समझो, जब सबका व्यवहार समझ में आ जाए और सबके दुर्गुणों को कभी अपने में समावेश न होने दे। 


मैं मेरी जब जायगी, तब आवेगी और । 

जब यह निश्चल होयगा, तब पावेगा ठौर ॥5॥ 


हिंदी अनुवाद :- शरीर-जगत की जब अहन्ता-ममता समाप्त होगी, तभी स्वरूप-बोध प्राप्त होगा। जब यह मन अपने आप में ही निश्चल हो जायेगा, तभी स्थिति की प्राप्ति होगी। 


कबीर धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय । 

टूक एक के कारने, स्वान घरै घर जाय 6॥ 


हिंदी अनुवाद :- धीरज धरने से अपने स्थान पर ही हाथी मनभर का भोजन पाता है, लेकिन एक टुकड़े के लिए कुत्ता घर-घर भटकता है।


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कांकर-पाथर जोड़ के मस्जिद लियो बनाय,

तापे मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा भयो खुदाय ॥

जैसी प्रीति कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय ।

कहैं कबीर ता दास का, पग न पकड़े कोय ||

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☞☞कबीरदास का जीवन परिचय |☜☜

भक्त कवियों में कबीर का स्थान आकाश नक्षत्र के समान है। वे अंधकारमय मन को प्रकाश दिखाते हैं। कबीर के बारे में मान्यता है कि इनका जन्म 15 ज्येष्ठ शुक्ल को संवत् 1475 को काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। कहा जाता है कि जगद्गुरु रामानन्द के आशीर्वचन से विधवा ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया था, परन्तु लोक-लाज के भय से बालक के जन्म के उपरांत वह उसे लहरतारा नामक तालाब के पास फेंक गयी थी। जहां से नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पत्ति गुजर रहे थे। उन्होंने बच्चे के रोने की आवाज सुनी। बच्चे के पास गये। उनका मन ममता से पसीज गया। वे निःसंतान थे। बच्चे को ले गये और लालन-पालन करना शुरू किया। उनका नाम कबीर पड़ा। 

कबीर के विचार 

कबीर पढ़े-लिखे न थे। वे अपने माता-पिता के कपड़े बुनने का कार्य किया करते थे। करघे पर बैठकर कपड़ा बुनते थे और भक्ति-भाव में भरकर पदों की रचना करते थे। उनके कहे हुए पदों को लोग शौक से सुना करते थे, कुछ कंठस्थ कर लेते थे, कुछ लिख लिया करते थे। उनकी संगति में बैठने वाले हिन्दू-मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग हुआ करते थे। उनकी संगति में बैठने वाले ही लोग उनके शिष्य बनते गये। ये कबीर पंथी कहलाये। ये कबीर पंथी आज भी भारत में बड़ी संख्या में है। उनकी उपासना और पूजा पद्धति अन्य धर्म-सम्प्रदाय के लोगों से अलग हैं। 

कबीर के समस्त पदों का संकलन 'बीजक कहलाता है। बीजक के 3 भाग है- रमैनीसबद, साखी

बाह्य आडम्बर का विरोध  

कबीरदास धर्म के बाह्य आडम्बर के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों के बाह्य आडम्बर को लेकर अपने दोहों में समान रूप से फटकार सुनायी है। देखें इन पदों को —

पाथर पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजूं पहाड़, 

घर का चकिया कोई न पूजै, जाके पीसा खाय ।

मूर्तिपूजा को बाह्य आडम्बर मानने के साथ-साथ कबीर ने मुसलमानों के लिए भी कहा है–

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